न्याय में देरी भी नाइंसाफी है……

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नई दिल्ली – निर्भया कांड के चाराें दाेषी दूसरी बार फांसी से बच गए। 1 फरवरी का डेथ वारंट पटियाला हाउस काेर्ट ने रद्द कर दिया। दाेषियों ने फांसी अनिश्चितकाल तक टालने की मांग की थी। एएसजे धर्मेंद्र राणा ने फैसले के बाद सुनवाई की अगली तारीख तय नहीं की। जज बाेले- आंखें मूंदकर भेदभाव नहीं , जज ने कहा- तय प्रक्रियाओं के जरिये कानूनी उपाय भी सभ्य समाज की पहचान है। देश की अदालतें कानूनी उपायों में जुटे किसी भी दाेषी के साथ आंखें मूंदकर भेदभाव नहीं कर सकती हैं। मृत्युदंड भी शामिल है। दाेषियाें के वकील एपी सिंह ने सुनवाई टालने की मांग करते हुए कहा था कि उनके कई कानूनी उपाय बाकी हैं। जेल प्रशासन ने कहा था कि तीन दाेषियाें को फांसी देने में कोई दिक्कत नहीं। काेर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। एएसजे एसके अराेड़ा ने पहले 22 जनवरी और फिर 1 फरवरी का डेथ वारंट जारी किया था। इसी बीच, उन्हें एक साल के डेपुटेशन पर सुप्रीम काेर्ट भेज दिया गया। शुक्रवार को पहली बार सुनवाई हुई। न्याय में देरी भी नाइंसाफी है… 7 साल संघर्ष के बाद भी इंसाफ को तरसती आंखों से झरते आंसू दर्द बयां कर रहे हैं। आज पूरी खबर निर्भया की मां आशा देवी की ही जुुबानी…मुजरिम जो चाहते थे वही हुआ। उनके वकील एपी सिंह ने मुझे काेर्ट में चैलेंज किया कि फांसी अनंत काल तक नहीं हाेगी। काेर्ट, दिल्ली सरकार और केंद्र इसे सुनें। जब सुप्रीम काेर्ट में रिव्यू और क्यूरेटिव याचिका खारिज हाे चुकी हैं ताे वह कैसे चैलेंज कर रहे हैं? सरकार और काेर्ट, मुजरिमाें को माैका दे रहे हैं। क्याेंकि वे पुरुष हैं। हमारी बच्ची काे तो जीने का काेई हक नहीं था। लेकिन अपराधियों को है। काेर्ट और सरकार उनके सामने बार-बार हमें झुका रहे हैं। पर, मैंने उम्मीद नहीं छाेड़ी। सरकार काे फांसी देनी ही पड़ेगी। नहीं ताे संविधान काे आग लगा दें। समाज, सुप्रीम काेर्ट से लेकर लाेअर काेर्ट तक सरेंडर कर दें कि फांसी की सजा सिर्फ लाेगाें काे गुमराह और शांत करने के लिए सुनाई थी।  सुप्रीम कोर्ट बोला- दोषियों के अधिकारों में कटौती नहीं होगी, पीड़ितों को राहत देने पर विचार करेंगे : फांसी की सजा पर तय समय में अमल के लिए गाइडलाइंस की मांग पर सुुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने वर्ष 2014 में शत्रुघ्न चौहान बनाम केंद्र सरकार केस में दिए फैसले में संशोधन की मांग से जुड़ी केंद्र की अर्जी पर नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने 2014 के केस में याचिकाकर्ता रहे शत्रुुघ्न चौहान से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। केंद्र ने कहा है कि अगर चाैहान पक्ष नहीं रखना चाहें तो कोर्ट एमिकस क्यूरी भी नियुक्त कर सकता है। सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट की गाइडलाइंस सिर्फ दोषी के अधिकारों पर केंद्रित हैं। पीड़ितों के नहीं। एक से अधिक दोषी हों तो वे बचाव उपाय बारी-बारी से इस्तेमाल कर फांसी बार-बार टलवाते रहते हैं। केंद्र सरकार ने मांग की कि पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिलवाने के लिए भी कोर्ट दिशा-निर्देश जारी करे। चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा- हम पीड़ितों के लिए भी दिशा-निर्देश जारी करेंगे। लेकिन दोषियों के संरक्षण के लिए दिए गए अधिकारों में कोई बदलाव नहीं किए जाएंगे।