संवारने में फूंके 80 लाख..

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रायपुर –  शहर के लाेगों को सुविधाएं देने के बजाए स्मार्ट सिटी कंपनी ने अपने दफ्तर को सजाने-संवारने में 80 लाख रुपए फूंक दिए। इतना ही नहीं, 2 करोड़ से बने साइकिल ट्रैक पर ठेले-खोमचे हैं और खाली पड़ी स्मार्ट पार्किंग में झोपड़ियां हैं। भास्कर ने उन सभी कामों का सिलसिलेवार जायजा लिया। जिन कामों का स्मार्ट सिटी का चेहरा बताया गया। पड़ताल में पता चला कि ज्यादातर प्रोजेक्ट पीपीपी मोड पर दिए गए। इनमें भी बहुत से काम अधूरे छोड़कर ठेका कंपनी गायब हो गई। तो कुछ के काम से नाखुश होकर स्मार्ट सिटी ने ठेका कंपनी के साथ करार रद्द कर दिया। जैसे ई टॉयलेट प्रोजेक्ट को छोड़कर कंपनी बीच में ही भाग गई। अब दूसरी बार इस पर काम हो रहा है। स्मार्ट पार्किंग वाली ठेका कंपनी को आरएससीएल ने खुद ही ब्लैक लिस्टेड कर दिया।
दफ्तर संवारने में लगा दिए 80 लाख : स्मार्ट सिटी में खर्च को लेकर किस तरह की दरयादिली दिखाई गई इसका इंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अफसरों ने स्मार्ट सिटी का दफ्तर सजाने में ही 80 लाख रुपए खर्च कर दिए थे। तब यह काफी चर्चा का विषय था। एेसा नहीं है कि अलग से कोई बिल्डिंग बनाई गई। बल्कि आउटडोर स्टेडियम के निर्मित परिसर की ही साज-सज्जा की गई। महंगे एयरकंडीशंड और कंप्यूटर, लैपटाप खरीदे गए। कंसलटेंट कंपनियों बैठक इत्यादि की तमाम सुविधाएं दी गईं।
मैदान में वाकिंग टाइल्स 80 लाख का, नाम हेल्दी हार्ट ट्रैक : हेल्दी हार्ट टैक के नाम पर स्मार्ट सिटी के अफसरों ने पैसे की जमकर बर्बादी की। दरअसल, अफसरों ने प्लानिंग की थी कि इनडोर स्टेडियम के पास हेल्दी हार्ट ट्रैक बनाएंगे। इसमें बुजुर्ग चलेंगे, जिससे उनके घुटनों में दर्द नहीं होगी। खास तरह के रबर वाले टाइल्स लगाने की योजना थी लेकिन उसे कैंसिल कर दिया गया। अब अफसरों ने इसी योजना के तहत सप्रे शाला मैदान के चारों ओर सामान्य तरह के वाकिंग टाइल्स जो गार्डनों में लगते हैं उसे लगा दिया। मैदान को थोड़ा रंगरोगन कर दिया और 80 लाख का खर्च बताकर हेल्दी हार्ट ट्रैक बना दिया। यहां समझने वाली बात यह है कि मैदान में वाकिंग टाइल्स की क्या जरूरत है।
35 लाख का पंप ट्रैक, सवा दो लाख की साइकिल : स्मार्ट सिटी के अफसरों ने मोतीबाग की कायाकल्प करने की प्लानिंग बनाई थी। यहां कृत्रिम झरने, नदी, योगा व मेडिटेशन सेंटर, पार्किंग सहित कई तरह की सुविधाओं का सुनहरा सपना दिखाया गया। ज्यादातर सपने ही रह गए। यहां 35 लाख रुपए खर्च कर पौधों की भूलभुरइया और एडवेंचेरस साइकिलिंग के लिए पंप ट्रैक बनाया गया। ट्रैक तैयार होने के बाद 35-35 हजार की छह साइकिलें खरीदी गई। ट्रैक तैयार होने के बाद यहां शहर के किसी भी व्यक्ति ने एक भी दिन साइकिलिंग नहीं की। प्रति घंटे के हिसाब से यहां लोगों को साइकिल चलाने के लिए दिया जाना था।
दो करोड़ का साइकिल ट्रैक : गौरवपथ में साइकिल ट्रैक बनाकर दो करोड़ रुपए खर्च किए गए। इस ट्रैक का आज कुछ भी उपयोग नहीं हो रहा है। यह ट्रैक सड़क के दूसरे किसी हिस्से की तरह ही है लेकिन खास बात यह है कि ढाई मीटर के इस पैच पर दो करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं। जब लोग इस ट्रैक पर गाड़ियां चलाने लगे, ठेले-खोमचे लगने लगे तो स्मार्ट सिटी के अफसरों ने लोहे बड़े-बड़े पोलार्ड भी लगा दिए। इसपर करीब एक लाख रुपए अतिरिक्त खर्च किए गए।
40 लाख की नेकी की दीवार : अनुपम गार्डन के पास स्मार्ट सिटी के अफसरों ने 40 लाख रुपए खर्च कर नेकी की दीवार बनाई है। इस दीवार में लोग अपने पुराने कपड़े और चीजे रख सकते हैं और जरूरतमंद लोग उसे यहां से फ्री में ले जा सकते हैं। जानकारों का कहना है कि जितना खर्च नेकी की दीवार बनाने में की गई है, उतने खर्च पर एक सामान्य दो मंजिला मकान बनाया जा सकता है। इस दीवार का उपयोग भी अब ज्यादा नहीं हो रहा। बताया जा रहा है कि यहां दान में आई चीजों को कुछ लोग लेजाकर बेचते हैं, क्योंकि स्मार्ट सिटी ने यहा कोई चौकीदार नहीं नियुक्त किए है। इसलिए अब लोग यहां चीजें दान करना भी बंद कर रहे हैं।
गांधी मैदान की स्मार्ट पार्किंग में टपरा बैरियर : शहर में 22 जगहों पर स्मार्ट पार्किंग शुरु करने के प्लान पर ब्रेक लग गया। गांधी मैदान में पिछले साल सितंबर में ही ये शुरु होनी थी। ठेका रद्द होने के बाद कंपनी ने हाल ही में ऑटोमेटिक बूम बैरियर गेट का सेटअप निकाला। मैदान के बीचों-बीच टपरा बनाकर पर्ची काटना फिर शुरु।
ये प्रोजेक्ट भी गैरजरूरी
58 लाख की दो नेकी की दीवारें : गांधी पार्क और अनुपम गार्डन में करीब 58 लाख रुपए खर्च कर नेकी की दीवारें बनाई गईं। इनका इस्तेमाल लोग घरों से निकलने वाले रिजेक्टेड आइटम को डंप करने के लिए कर रहे हैं। नेकी के नाम पर ऐसे कपड़े आते हैं, जो दोबारा उपयोग लायक नहीं होते।
2 करोड़ का घड़ी चौक का लॉन : 2 करोड़ रुपए खर्च कर घड़ी चौक रेनोवेट हुआ। पर यहां बने लॉन को लैंडस्केप केटेगरी में रखा गया। इसमें कोई शहरी चल नहीं सकता। जिस कंपनी को ठेका दिया उसने ही ऐसी रोक लगा रखी है।
तीन साल पहले रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए जो प्रपोजल दिया गया। उसमें हेल्थ एजुकेशन रोजगार और सुविधाओं के विकास से जुड़ी तमाम बातें 92 पन्नों के दस्तावेज में कही गई थी। शहर में स्वास्थ्य, पीने के पानी के इंतजाम, रोजगार के मौके जैसे काम थे। इस साल सितंबर में मिशन के तीन साल पूरे हो जाएंगे। बहुत सी योजनाएं अभी तक फाइलों और प्रजेंटेशन से आगे नहीं बढ़ पाई है। ये हालात है कि करोड़ों का फंड इस्तेमाल नहीं हो पाया। और करोड़ों रुपए खर्च कर जो हुआ वो भी बेमतलब।

लेखाजोखा – केंद्र से मिले फंड में सिर्फ 69 करोड़ ही खर्च हुआ
वित्त वर्ष राशि (करोड़ रु. में)

2016 –     17 94.5
2017 –     18 99.5
2018 –     19 0
2019 –     20 0

कुल राशि 196

69.11 – उपयोग की गई
126.89 – इस्तेमाल नहीं हुए
रिएलिटी चैक
हेल्थ : कोई प्रोजेक्ट नहीं
पानी : स्मार्ट जल योजना शुरु नहीं
एजुकेशन : स्मार्ट क्लास अधर में
रोजगार के मौके : रोजगार जेनरेट नहीं हुआ
स्मार्ट मार्केट : दो बड़े बाजार एक – साल भर से पीछे, दूसरा शुरू नहीं

 

 

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