नई दिल्ली. लोकसभा चुनावों के बाद करीब 200 अमेरिकी कंपनियां अपना मैन्युफैक्चरिंग बेस चीन से भारत में शिफ्ट करना चाहती हैं। अमेरिका के प्रमुख एडवोकेसी ग्रुप यूएस-इंडिया स्ट्रैटजिक एंड पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) का ऐसा कहना है। फोरम के अध्यक्ष मुकेश अघी के मुताबिक भारत में निवेश के लिए कंपनियां उनसे बात कर रही हैं।
सरकार को जमीन से लेकर कस्टम तक के मुद्दों पर ध्यान देना होगा: अघी
अघी का कहना है कि भारत में जो भी नई सरकार बनेगी उससे रिफॉर्म में तेजी लाने और फैसले लेने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने का अनुरोध किया जाएगा। न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में अघी ने कहा कि सरकार ने पिछले 12 से 18 महीने में ई-कॉमर्स और डेटा लोकलाइजेशन जैसे मामलों में जो फैसले लिए उन्हें अमेरिकी कंपनियां ग्लोबल की बजाय घरेलू नजरिए से लिए गए फैसल मान रही हैं।
अघी के मुताबिक नई सरकार को यह समझना पड़ेगा कि अमेरिकी कंपनियों को कैसे आकर्षित किया जाए। इसके लिए जमीन से लेकर कस्टम तक के मुद्दों पर ध्यान देना होगा। आगे बहुत ज्यादा सुधारों की जरुरत है। इससे बड़ी संख्या में रोजगार भी मिलेंगे।
यूएसआईएसपीएफ के अध्यक्ष अघी ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) पर विचार करने की जरूरत है। इससे भारत को फायदा होगा। अगर भारत चीन से आने वाले सस्ते सामान के बारे में चिंतित है तो एफटीए से यह जरूरत पूरी हो जाएगी।
अघी का कहना है कि हमने अपनी सदस्य कंपनियों की उच्च स्तरीय मैन्युफैक्चरिंग काउंसिल बनाई है। उनका कहना है कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने के लिए बैकअप स्ट्रैटजी की जरूरत है। लेकिन, छोटे-छोटे मुद्दे उन्हें पीछे खींच सकते हैं। ज्यादातर कंपनियां चुनाव खत्म होने का इंतजार कर रही हैं। वो कंपनियां भारत आएंगी तो बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश भी आएगा। पिछले 4 सालों में हमारी सदस्य कंपनियों ने 50 अरब डॉलर का निवेश किया है।