जवान से बूढ़े होते ——–

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सब जगह अब नए परिवर्तन नजर आते हैं
बालक से जवान न जाने कब हो जाते हैं
तन पर चर्बी न जाने कब बढ़ जाती है
देखते ही देखते तन से काम नही कर पाते है
मुँह बड़ा और बदन में पेट निकल आते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े होे जाते हैं….

हर साल सर के बाल कम होते जाते है
बचे बालों में और भी सफेदी,चांदी पाते है
चेहरे पे झुर्रियों की तादाद बढ़ा जाते है
रीसेंट पासपोर्ट साइज़ फोटो में हम आप
कितना अलग थलग नज़र आते है
अब कहाँ पहले जैसी बात कहते जाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

सुबह की सैर में चक्कर खा जाते है
तन में थकान सी और आँखों में नींद
उम्र बढ़ने पर सबकी आखों पे चश्मे नजर आते है
सारे मौहल्ले को पता है पर हमसे छुपाते है
वजन कम करने के कारण हमसब
दिन प्रतिदिन अपनी खुराक घटाते है
और तबियत ठीक होने की बात फ़ोन पे बताते है
ढीली हो गयी पतलून को टाइट करवाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

किसी के देहांत की खबर सुनकर घबराते है
भतारी में फिरने को देखते ही पहुच जाते है
कोई बीमारी न घरकर जाय सोचकर घबराते है
और अपने परहेजो की संख्यां बढ़ाते है
हमारे मोटापे पे हिदायतों के ढेर लगाते है
तंदुरुस्ती हज़ार नियामत हर दफे बताते है
रोज के व्यायाम के फायदे सबको गिनाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

हर साल बड़े शौक से बैंक में जाते है
लेकिन महंगाई की मार और कर्ज से टूट जाते है
अपने जिन्दा होने का सबूत दे कितना हर्षाते है
जरा सी बड़ी पेंशन पर फूले नहीं समाते है
एक और नई मियादी जमा क़िस्त करके आते है
खुद के लिए नहीं कुछ बच्चों लिए ही बचाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

बढ़ती उम्र में याददाश्त क्षीण सी होजाती है
और हम चीज़े रख के अब अक्सर भूल जाते है
उन्हें ढूँढने में सारा घर सर पे हम उठाते है
और संगिनी को पहले की ही तरह हड़काते है
पर उसके बिना हम एकपल भी नहीं रह पाते है
एक ही किस्से को कितनी बार दोहराते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

रोशनी कम और आइसाइड के नम्बर बढ़ जाते है
चश्मे से भी अब ठीक से कुछ नहीं देख पाते है
ब्लड प्रेशर की दवा लेने में आनाकानी मचाते है
एलोपैथी के साइड इफ़ेक्ट नई पीढ़ी को बताते हैं
डायबिटीज से मुक्ति पाने को सुबह शाम टहलते है
योग और आयुर्वेद की ही रोज रट लगाते हैं
अपने ऑपरेशन को और आगे टलवाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

उड़द , अरहर की दाल अब नहीं पचा पाते है
लौकी, तुरई और धुली मूंग ही अधिकतर खाते है
दांतों में अटके खाने को तिल्ली से खुजलाते है
पर डेंटिस्ट के पास कभी हम नहीं जाते है
दांतो के कीड़े से कुछ अब नही चबा पाते है
काम चल तो रहा है की ही धुन बैठे लगाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

रोज के त्योहार जन्मदिन के खर्चे बढ़ जाते है
संगिनी को पूड़ी पकवान और मीठे खाने के
परहेज बैठ कर हर रोज बताते है
हर त्यौहार पर घर की पुताई मरम्मत कराते है
अपने पुराने घर को नई दुल्हन सा चमकाते है
हमारी पसंदीदा चीजों के ढेर लगाते है
हर छोटे- बड़ो की फरमाईश पूरी करने कोे
फ़ौरन ही बाजार दौडे , मंडी चले जाते है
पोते-पोतियों से मिलकर कितने आंसू टपकाते है
देखते ही देखते जवान से हम बूढ़े हो जाते हैं….

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डॉ दिग्विजय शर्मा, आगरा

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