चाणक्य नीति में 3 बातों को बहुत दुखदाई बताया गया है। यानी 3 तरह के दुखों के बारे में बताया गया है। जो बहुत ज्यादा परेशान करते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ के आठवें अध्याय के नौंवे श्लोक में बताया है कि ये दुख भोजन, धन और बुढ़ापे से संबंधित है। वैसे तो संसार में कई तरह के दुख हैं लेकिन उनसे किसी न किसी तरह बचा जा सकता है। जबकि चाणक्य के बताए 3 तरह के दुखों से पीड़ित इंसान न तो मरता है न ही जीवित रहता है।वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्तगतं धनम् ।
चाणक्य कहते हैं कि वो इंसान सबसे ज्यादा दुखी है जिसको बुढ़ापे में पत्नी छोड़कर चली जाती है यानी मर जाती है। बुढ़ापे में पति-पत्नी ही एक-दूसरे के सबसे अच्छे साथी होते हैं, लेकिन ऐसे नाजुक समय में जिसकी पत्नी प्राण त्याग दे तो उससे बड़ा दुखी इंसान कोई नहीं होता। वहीं भाइयों, परिवार या रिश्तेदारों के हाथ में आपका पैसा चला जाए तो वो भी बहुत दुखदायी होता है। ऐसी स्थिति में आप किसी को कुछ नहीं कह सकते हैं। आपको सिर्फ इंतजार ही करना पड़ता है। ऐसे आप चिंता में ही लगे रहते हैं। वहीं चाणक्य ने एक और दुख के बारे में बताया है, वो कहते हैं कि, किसी के अधीन भोजन करना भी सबसे बड़ा दुख है। यानी आपका भोजन किसी के सहारे हो तो आप किसी को कुछ नहीं कह सकते हैं। इक तरह से आप गुलामी की जिन्दगी जीने लगते हैं।