पुलवामा में सेना पर हमला हुआ है। गृह मंत्री का जो बयान आया, हैरान करने वाला है गोया आखरी मुगल शासक बोल रहा हो। इतनी थकी भाषा कल्पना से परे है। सेना और अर्ध सैनिक बलों का मनोबल बयानों से नहीं बढ़ता है।
पांच साल पहले यूपीए की सरकार थी तब 56 इंची सीना फुलाते देशभर में घूम रहे थे। एक के बदले दस सिर काटने की बात करते थे। एक सर्जिकल स्टाइक की तो उसका ऐसा प्रचार किया मानो दुनिया फतेह कर ली हो। यहीं तक नहीं रुके, उरी फिल्म बनाकर देशभर के सिनेमाघरों में टैक्स फ्री दिखाकर वाहवाही लूटकर चुनावी लाभ लेने की फिराक में हैं। हद कर दी भाई।
साल 2011 में 71, साल 2012 में 75, साल 2013 में 64 और साल 2014 में 65 जवान शहीद हुए। निजाम भिश्ती के गद्दी पर बैठते ही एक साल के भीतर 342 जवानों कश्मीर में शहीद हो गए। तब से ये सिलसिला जारी है।
देश के रक्षा और विदेश संबंधी मामलों में पिछली सभी सरकारें विपक्ष को साथ लेकर चलती रही हैं। साल 1971 का युद्ध हुआ तो विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार बोला। आपरेशन ब्लू स्टार पर कैबिनेट मीटिंग से पहले इंदिरा गांधी ने विपक्ष के नेता चरण सिंह से बात की। उनके हामी भरने पर इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सेना भेज दी। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का पक्ष रखने के लिए खुद चलकर अटल बिहारी वाजपेयी के पास गए और उनसे अनुरोध किया। अटल जी विपक्षी नेता होते हुए भी भारतीय दल के नेता बनकर गए।
पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे, संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान को कश्मीर मसले पर जवाब देने के लिए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जो टीम भेजी, उसमें विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद भी शामिल थे। पोखरन परमाणु विस्फोट पर कई देशों ने पाबंदी लगाई तो भारत का पक्ष रखने के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने जनता दल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल को विदेश भेजा।
निजाम भिश्ती बस बोलना जानता है। भारतीय सेना ने पहले भी कई बार सर्जिकल स्टाइक की है। पर कभी हल्ला नहीं मचाया। मुझे याद है कि पाकिस्तान में भारतीय सेना द्वारा किए गए एक सर्जिकल स्टाइक की वास्तविक कहानी के आधार पर दूरदर्शन पर फौजी सीरियल दिखाया गया था। यह शाहरुखा का पहला टीवी सीरियल था और इसी सीरियल के हिट होने पर उसका टीवी और सिनेमा में कैरियर बना।
सर्जिकल स्टाइक का मतलब है कि शरीर पर कोई छोटी सी फुंसी का उपचार। सूक्ष्य सर्जरी। इसका न तो प्रचार होता है और ढोलक बजाकर गाना गाया जाता है। एक उरी की घटना पर सर्जिकल स्टाइक बनाकर देश दुनिया में दिखाया जा रहा है। सेना की बहादुरी का सियासी लाभ लेने की कोशिश हो रही है। शर्मनाक है।
हां, एक बात और, मंत्री पद पर बैठे नेताओं की जवाबदेही क्या है ? साल 1957 में देश की वित्तीय भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नेहरू सरकार के वित्तमंत्री टीटी कृष्णमाचारी ने जवाबदेही स्वीकारते हुए इस्तीफा दे दिया था। लोहिया जी ने पुलिस द्वारा किसानों पर गोली चलाने पर अपनी ही सरकार गिरा दी। साल 1982 में डकैतों का आतंक चरम पर हो गया तो वीपी सिंह ने कहा कि डकैतों का खात्मा नहीं कर पाया तो इस्तीफा दें देंगे। उन्होंने एक माह बाद सच में इस्तीफा दे दिया जब उनके ही सगे भाई और भतीजे की डकैतों ने हत्या कर दी। रेल हादसा होने पर रेल मंत्री के पद से और जहाज हादसा होने पर विमानन मंत्री के पद से माधव राव सिंधिया ने भी इस्तीफा दिया। हवाला का आरोप लगा तो लाल कृष्ण आडवाणी ने गृह मंत्री और ताबूत घोटाले का आरोप लगा तो जार्ज फर्नांडीज ने रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देने में देर नहीं की। दरअसल लोकतंत्र में मंत्री की जवाबदेही होती है। बाकी मंत्री करता ही क्या है ? न योजना बनता है और न क्रियान्वयन करता है। ये सब काम अफसरों की भारी भरकम फौज करती है।
हमारे गृह मंत्री को पद का लालच छोड़कर लोकतांत्रिक परंपरा को कायम रखना चाहिए। जो नेता सुचिता, नैतिकता और जवाबदेही से मुंह मोड़ लेता है उसे इतिहास कभी माफ नहीं करता है राजनाथ जी।