नई दिल्ली (पवन कुमार). बाजार में करीब 15 साल से पेटदर्द, बुखार, ब्लड प्रेशर और अनिद्रा जैसी बीमारियों की 80 दवाएं ऐसी हैं, जिन्हें बनाने या बेचने की अनुमति केंद्र सरकार से नहीं ली गई थी। इन दवाओं को बनाने के लिए कंपनियों ने सिर्फ ज्य सरकारों से लाइसेंस के लिए आवेदन किया था और राज्यों ने मंजूरी दे दी थी। अब ये दवाएं बैन होने जा रही हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवाएं बैन करने का गजट नोटिफिकेशन 11 जनवरी को छपने के लिए भेज दिया था। मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, इन दवाओं पर बैन उसी दिन से प्रभावी माना जाएगा। ये दवाएं दूसरी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले सॉल्ट से मिलकर बनाई जा रही हैं। इन्हें सेहत के लिए गंभीर खतरा माना जाता है।
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) के एक अफसर ने बताया कि नई दवा को बाजार में लाने के लिए सबसे पहले सीडीएससीओ से अनुमति लेनी पड़ती है। अनुमति देने से पहले सीडीएससीओ उस दवा की क्वालिटी और शरीर पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करती है। लेकिन, इन 80 दवाओं को बनाने के लिए अनुमति नहीं ली गई। स्टेट ड्रग्स कंट्रोलर ने अपने स्तर पर कंपनियों को मंजूरी दे दी। यह बात अब सामने आई है।
जिन दवाओं पर बैन लगा, उन्हें ये कंपनियां बेच रहीं
इन्टास, एबॉट, एरिस्टो, एल्केम, सिप्ला, मैनकाइंड जैसी कई कंपनियां इस तरह की फिक्स डोज कॉम्बिनेशन वाली दवाएं बना रही हैं। इनमें कई छोटी कंपनियां भी हैं, जो अलग-अलग बीमारियों की दवाओं को कंबाइन कर एक टैबलेट बना रही हैं, ताकि अलग-अलग दवाएं न बनानी पड़ें।
विकसित देशों में ऐसी दवाएं बनाना अपराध, भारत में ढील
आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल का कहना है कि विकसित देशों में ऐसी दवाएं बनाना अपराध है। सिर्फ भारत जैसे कुछ विकाससील देशों में इस मामले में काफी ढील बरती जाती रही है।